हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ!
अब मानवता त्राहिमाम् करे।
वसुधा रो रही विकल व्याकुल,
कौन जगपालक प्रमाण धरे?
जग व्याकुल है, नर है व्याकुल,
यमुना व्याकुल, वृंदावन व्याकुल,
व्याकुल धरती, व्याकुल अम्बर,
व्याकुल चेतना, व्याकुल दिगम्बर,
कंस का अंश बढ़ रहा धरती पर,
कौन अब वध करे, संहार करे?
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ...
राधा मौन है मौन है गोकुल,
अब प्रभात भी दिखता गोधुल,
नन्द मौन है, है मौन यशोदा,
प्राणवायु को तरसे वसुधा,
पूतना का विष फैला सृष्टि में,
कौन गरल का स्तन पान करे?
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ...
दुःख है क्षोभ है और तृष्णा है,
नहीं दिखता तो बस कृष्णा है,
प्रचण्ड पाप है दुर्बल मानव,
अट्टहास करता यहाँ दानव,
हर गोपी यहाँ रुदन ठानती,
हर एक बाला चीत्कार करे।
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ...
रणभूमि बन गया यहाँ जीवन,
खड़ा अकेला अर्जुन अंकिचन,
परिस्थितियाँ कौरव बन गई हैं,
विजय यहाँ क्या करे संबोधन,
थामें कौन अब अस्मत की डोरी,
और कौन भवसागर से पार करे?
हे गिरिधर कृष्ण मुरारी आओ...
ममता मनीष सिन्हा - रामगढ़ (झारखंड)