स्वच्छता - कविता - विनय विश्वा

पेड़-पौधे, जीव-जन्तु
इन सबमें है एक प्राणी बड़ा
मानव है जिसका नाम पड़ा।

विविध आयामो को लेकर
पेड़ मानव से बोला
स्वच्छता का मैं सबसे बड़ा सिम्बोला।

स्वच्छता जीवन का आधार है,
सुख समृद्धि का सार है,
मानव मन का मानव तन का
जगह-जगह कूड़े-करकट,
वातावरण में करते खटपट।

बड़े-बुज़ुर्ग कह गए हैं
सर-सफ़ाई जहाँ है
ईश्वर का वास वहाँ है,
एक निर्भीक बूढ़ा ने
इस हथियार को अपनाई
इस भुवन को है
आज़ाद कराई।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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