जीने की राह - कविता - गोपाल जी वर्मा

धरा पर पाँव है, और उपर आकाश है,
तुम्ही बताओ तुमको किस कमी का एहसास है।
 
पक्षी करते नही धन सँग्रह,
पशु जमा नहीं करते कोई धन।
कल की चिंता मे व्याकुल क्यों,
रहते हो तुम हर पल हर क्षण।

सभ्यता हमें लाचार बना दे,
शिक्षा भी कदाचार बढा दे।
अपने कर्म पर अडिग रहो तुम,
कोई नहीं जो अनाचार बढा दे।

जीवन यापन एक कला है,
विसम्मति सही नहीं है।
मार्ग तुम्हारे सुन्दर निर्मल,
फिर मुड़ना रुकना सही नहीं है।

देखोगे तेरे पीछे एक क़ाफ़िला गुज़र रहा है,
आगे बढ़ते जाओ तुम थकना रुकना सही नहीं है।

जीवन सयंम ढोस कदम है,
निर्मल निश्चल निराकार है।
परहित को पहचान करो तुम,
जीवन सफल साकार कदम है।

गोपाल जी वर्मा - कदम कुआँ, पटना (बिहार)

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