कल हौसला था
जुनून, उल्लास था
ताक़त थी
महफ़िलें थी
शोहरत और सुर्ख़ियाँ
दोस्तों की
वाहवाही और बेशुमार तालीयाँ
तो ज़माने को बदलने चला था मैं।
अब न हौसला
ना बाक़ी रहा जुनून
कमज़ोर तन्हा और गुमनाम
तोहमतें ताने उल्हानें
दोस्तों की बे-रुख़ी और मुफ़लिसी के बीच
बदलतें इस दौर में
ख़ुद को बदल रहा हूँ
ज़माने के हिसाब से।
डॉ॰ विजय पंडित - मेरठ (उत्तर प्रदेश)