ये ज़िंदगी की बात है,
तू आज क्यूँ उदास है।
क़दम तेरे जो बढ़ चले,
तो शोक कैसा आज है।
ये वक़्त की ही बात है,
काली अँधेरी रात है।
ये रात बीत जाने दो,
नई सुबह तेरे साथ है।
जो राह में चले क़दम,
तो कोशिशें न करना कम।
हवा के रुख़ को देख कर,
न रास्ते बदलना तुम।
संभल संभल के चल ज़रा,
तू ज़िंदगी का ले मज़ा।
मिलेंगी सारी मंज़िलें,
बस हार कर न बैठना।
ऋचा तिवारी - रायबरेली (उत्तर प्रदेश)