मैं एक नारी हूँ - कविता - सोनल ओमर

मैं अबला नहीं, 
असहाय नहीं,
ना ही बेचारी हूँ।
मैं गर्व से कहती हूँ,
मैं एक नारी हूँ।।

जन्म से ही मुझे
असमानताओं का समाज दिखा,
फिर भी हर परिस्थिति में
संघर्षों में चलना सीखा।
विषम हुए हालात 
पर ना हालात की मारी हूँ।
मैं गर्व से कहती हूँ,
मैं एक नारी हूँ।।

कभी सोच लूँ अपने बारे में
तो समझ लेते ख़ुदग़र्ज़ी वो,
मैं बात करूँ आत्मनिर्भरता की
तब थोप देंगे अपनी मर्ज़ी को।
करती नहीं विद्रोह क्योंकि
सभ्य, शिष्ट, संस्कारी हूँ।
मैं गर्व से कहती हूँ,
मैं एक नारी हूँ।।

चूड़ी, पायल, घूँघट, साड़ी कभी
तो कभी दायरों में बाँध दिया,
नौ माह जिसे गर्भ में रखा
उसे भी ना मेरा नाम दिया।
मौन हो करूँ स्वीकार सभी
मगर ना समझो मैं हारी हूँ।
मैं गर्व से कहती हूँ,
मैं एक नारी हूँ।।

क्योंकि मैं अबला नहीं, 
असहाय नहीं,
ना ही बेचारी हूँ।
मैं गर्व से कहती हूँ,
मैं एक नारी हूँ।।

सोनल ओमर - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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