जीवन यह पूर्ण विराम नहीं - कविता - राघवेंद्र सिंह

शून्यकाल के पुलिनों पर,
जीवन थमने का नाम नहीं।
जीवन हो सकता अल्पविराम,
जीवन यह पूर्ण विराम नहीं।।

जीवन लहरों की उथल पुथल,
जीवन है सिंधु की गहराई।
जीवन विश्वास की अमरबेल,
जीवन है पुष्प की तरुणाई।

जीवन एक कठिन परीक्षा है,
यह पल भर का परिणाम नहीं।
जीवन हो सकता अल्पविराम,
जीवन यह पूर्ण विराम नहीं।।

जीवन तो एक चुनौती है,
जीवन काटों का एक सफ़र।
जीवन है संकल्पों का रथ,
जीवन ही है एक नया समर।

जीवन तो नित नव सूर्योदय,
यह ढलने वाली शाम नहीं।
जीवन हो सकता अल्पविराम,
जीवन यह पूर्ण विराम नहीं।।

जीवन समय का है पहिया,
जीवन रिश्तों का है आलय।
जीवन है जैसे वह अंबर,
जीवन ही है वह मेघालय।

जीवन है गिरकर फिर उठना,
जीवन कोई आराम नहीं।
जीवन हो सकता अल्पविराम,
जीवन यह पूर्ण विराम नहीं।।

राघवेंद्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos