जज़्बों से भरी है, मिट्टी अपने देश की,
सिर से लगाते हैं, मिट्टी अपने देश की।
देश पे ख़तरा जब जब आए जान लो,
टीका लगाएँ हम, मिट्टी अपने देश की।
फ़सलें उगाएँ, पतंग उड़ाएँ मर्ज़ी हमारी,
किसान के खेत में, मिट्टी अपने देश की।
खेल के मैदान हो या दंगल में सुल्तान,
करते हैं वर्ज़िश ले, मिट्टी अपने देश की।
आँगन की ड्योढ़ी या चूल्हे रसोई के,
हर घर काम आए, मिट्टी अपने देश की।
कुल्हड़, गमले, हाँडी, दीप सारे बनाते,
कुम्हार ले चक्की पे मिट्टी अपने देश की।
घर-मकान, महल-चौबारे के ईंट गारे में,
आती है काम में ये मिट्टी अपने देश की।
भारत की आज़ादी का अमृत महोत्सव,
'अनजाना' के सिर, मिट्टी अपने देश की।
महेश 'अनजाना' - जमालपुर (बिहार)