शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा।
इस तरह दर्द काग़ज़ से लिपटा रहा।।
हादसों में गुज़ारी है सारी उमर,
फिर भी कट न सका ज़िंदगी का सफ़र।
भावना मिट गई अर्थ बिकता रहा,
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा।।
साज़िशें करते करते मेरे हमसफ़र,
लूट लेते हैं दिल बनके वो रहगुज़र।
आह भरते रहे दर्द होता रहा,
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा।।
ख़्वाहिशें ज़िंदगी भर ख़तम न हुई
मर गए जो मुहब्बत तो कम न हुई।
अश्क गिरते रहे ग़म उठाता रहा,
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा।।
मैंने मिलकर ख़ुदा से दुआ माँग ली,
कितनी हैरत है तुमसे वफ़ा माँग ली।
ज़ख़्म मिलता रहा कष्ट होता रहा,
शब्द मिलते रहे गीत लिखता रहा।।
अभिषेक मिश्र - बहराइच (उत्तर प्रदेश)