कैसी दुनिया - गीत - सरिता श्रीवास्तव "श्री"

ईश्वर कैसी दुनिया है तेरी,
यहाँ रोते लोग हज़ारों हैं।

मंदिर में छप्पन भोग लगें,
प्रभु फल मेवा भण्डारे चुगें,
तरसते भिक्षुक हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

रोटियाँ फिंकती अटारी की,
ललचाती आँख भिखारी की,
गमछे बाँधे पेट हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

राहों में काँटे पग पग पर,
नंगे पैर चलता है पथ पर,
मज़दूर मजबूर हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

ताकत भी है कमज़ोर नहीं,
श्रम स्वेद गिरे जलधार वहीं,
दौलत से दूर हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

ग़रीब की ताक़त है मेहनत,
अमीर की ताक़त है दौलत,
पैसे मद चूर हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

ज़ख़्म लगे पर हँसता है,
मरहम उम्मीद न करता है,
ये मेहनत-कश हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

रंक बिछौना नहीं छाँव पर,
गरीब की लाज है दाँव पर,
लाज ख़रीदार हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

लाॅकडाउन में बेबस बेचारा,
गुल्लक से बहला के हारा,
बेकस लाचार हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

पच्चीस हज़ार का मोबाइल,
पत्नी बच्चों संग स्टाइल,
ये ख़ुशक़िस्मत हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

श्मशान में कोई भेद नहीं,
चंद रुपये कटे रसीद यहीं,
सम देह स्वाह हज़ारों हैं।
ईश्वर कैसी...,

सरिता श्रीवास्तव "श्री" - धौलपुर (राजस्थान)

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