विवशता - कविता - प्रवीन "पथिक"

ग़रीबी ने कर दिया घर में क़ैद!
बाहरी चकाचौंध आँखों को कर रही धूमिल;
इच्छाएँ दफ़्न हो गईं मज़ार के नीचे।
और एक पनारा बन गया आँख के कोरों में।
बेबसी और बेकारी ने;
चूर-चूर कर दिया हमारी महत्वाकांक्षाओं को।
विवशता ने स्मरण करा दिया,
तुलसी की पीड़ा-
"कहाँ जाईं का करीं!"
एक घोर सन्नाटा,
फैल गया व्यग्र अंतः में।
और 
छा गई एक रिक्तता;
जीवन के आँगन में,
ठीक मध्य में।

प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos