माँ - घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी

ममता की मूरत माँ होती ख़ूबसूरत माँ,
आँचल की छाँव तेरी हर बला टालती।

करती ख़ूब प्यार माँ मधुरम दुलार माँ,
ममता के मोती सारे मुझ पर वारती।

तुम्ही हो सारे तीर्थ माँ जग के सारे धाम माँ,
सुंदर सा जीवन मेरा भाग्य सँवारती।

मैं तेरी आँखों का तारा रखती ख़याल सारा,
अंगुली पकड़कर मेरी माँ निहारती।

कोई नहीं है माँ जैसा चरणों में स्वर्ग ऐसा,
प्यार के मोती लुटाए माँ ही पुचकारती।

प्रथम गुरु हो तुम वंदनीय माँ हो तुम,
शिक्षा संस्कार देकर जीवन सँवारती।

अपार आशीष देती बाधाओं से भीड़ लेती,
संकटों से बचाकर लाल को दुलारती।

मार्गदर्शक होती माँ जीवन दर्शन होती,
अनुभवों का ख़ज़ाना खोल ख़ूब वारती।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos