जीवन - कविता - आशुतोष भारद्वाज

कुछ सपनों के मर जाने का, 
दुख अनहद होता है, 
हँसते रोते इस जीवन को, 
फिर भी जीना पड़ता है।

कालचक्र में संबंधों को,
हर पल पिरोना पड़ता है,
हर आँसू से अपने मन को, 
हर बार भिगोना पड़ता है।

कुछ सपनों के...

अम्बर से सूरज ढलता हैं, 
काली रातें आती है,
समय बीतता जैसे जैसे, 
आकाश चाँदना होता है,
नव प्रभात की ख़ुशियों का, 
नव गीत सुनाने नीड़ों से, 
बाहर पखेरू आते हैं, 
खिल कर फिर से नव तरुएँ, 
अपने यौवन पर इठलाते हैं।

कुछ सपनों के...

आशुतोष भारद्वाज - पूर्णिया (बिहार)

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