वो मुक़द्दर कहाँ गया - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

अरकान : मफ़ऊल फ़ाइलात मुफाईलु फाइलुन
तक़ती : 221 2121 1221 212

बचपन का वो मासूम सा मंज़र कहाँ गया।
वो गाँव का छोटा सा समंदर कहाँ गया।

अन-बोल हफ़्तों रहता था छोटी सी बात पर,
वो यार और उनका वो तेवर कहाँ गया।

ख़ुशियों की चहल-क़दमीं थी त्यौहार था हर-दिन,
आशीष भरा पुरखों का वो घर कहाँ गया।

उस बेटे की माँ ने गढ़े थे अफ़सरी के ख़्वाब,
मज़दूर बन गया वो मुक़द्दर कहाँ गया।

अंग्रेज़ियत की भेंट ये तहज़ीब चढ़ गई,
झुकता था अदब से कभी वो सर कहाँ गया।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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