हूल- कविता - प्रहलाद मंडल

पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजों के ख़िलाफ़
ना जाने कितने जंग छिड़ी थी।
संथाल परगना के वंशज ने भी,
अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़
एक बड़ी लड़ाई लड़ी थी।
इतिहास बताता विद्रोह शुरू हुआ था,
1857 ई० के दौर में।
भू, जल, जंगल बचाने की ख़ातिर
आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच
युद्ध हुई थी 1855 ई० के ही दौर में।
30 जून को शुरू हुई थी हूल (विद्रोह)
सिद्धू-कान्हु, चांद-भैरव
इस विद्रोह के महानायक थें।
एक नारा लिए सिद्धू ने
"अबुआ राज अबु दिशोम"
जिसका मूल आशय था "अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो"
इसी नारा पे तीर कमान लिए अकड़े थें।
चार सौ गाँवों के साथी में
तीस हज़ार से अधिक सेना थें।
अंग्रेजी हुकूमत की लड़ाई में 
बीस हज़ार से अधिक अमर शहीद हमनें खोए थें।
सभी को खो कर भी सिद्धू-कान्हु 
शांत नहीं बैठा था।
अपने ही क़रीबी ने लोभ में आ कर
इन्हें अंग्रेजों के हवाले करवाया था।

प्रहलाद मंडल - कसवा गोड्डा, गोड्डा (झारखंड)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos