साहित्यकार श्री सुधीर श्रीवास्तव - कविता - महेन्द्र सिंह राज

गोंडा जिले के बरसैनिया गाँव में स्व. श्री ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव और स्व. विमला देवी के पुत्र के रूप में सन 1969 में अवतरित मूर्धन्य साहित्यकार श्री सुधीर श्रीवास्तव नाम के मोहताज नहीं है बचपन से ही हिन्दी साहित्य में रुचि थी लेकिन कार्य के बोझ के कारण उभर नहीं पाई, पर मई 2020 में पक्षपात से उबरने के बाद पुनः उनका साहित्य प्रेम जाग उठा और एक बार पुनः साहित्य साधना में लीन हो गए परिणाम स्वरूप अपने को एक मूर्धन्य साहित्यकार के रूप में स्थापित कर पाए। देश-विदेश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ छपती रहती हैं विभिन्न साहित्यिक पटलों से लगभग 650 के ऊपर सम्मान पत्र मिल चुके हैं। 1 जुलाई को उनके जन्मदिन के अवसर पर मैं उनको हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ देता हूँ और लोग भी इन  साहित्य साधक को अपनी शुभकामनाएं दीजिए ताकि वो साहित्य साधना में अविराम लीन रह सकें। 
- महेंद्र सिंह राज

सुधीर श्रीवास्तव नाम है जिनका,
बरसैनिया है जिनका सुख धाम।
थाना मनका पुर जनपद गोण्डा,
साहित्य साधना जिनका काम।।

श्री ज्ञान प्रकाश पिता है जिनके,
माता हैं स्वर्गीय श्री. विमला देवी।
बहुत सरल स्वभाव था जिनका,
परम धर्मणी, अरु कर्तव्य सेवी।।

एक जुलाई उन्नीस सौ उनहत्तर,
जनम लिए विमला के कोख।
बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के,
देते थे सब जन उनका परितोख।।

बचपन बीता खेल कूद में,
पठन-पाठन के ही रंग में।
कुछ बड़े हुए तो कूद पडे़,
संघर्ष युक्त जीवन रण में।।

पन्द्रह फर. दो हज़ार एक में,
शादी हुई श्री. अंजू के साथ।
दो बच्चों के पिता बन गए,
सर पर था बस माँ का हाथ।। 

बचपन से थी रुचि लेखन में,
जो जीवन संघर्ष में पीछे छूटी।
दो हज़ार बीस में पक्षघात लगा,
उनके स्वास्थ्य की बगिया लूटी।। 

पर पक्षघात ने साहित्य प्रेम को,
उनके मन में फिर जीवित किया। 
और साहित्य उपासना को फिर,
एक बार उनने पुनर्जीवित किया।। 

तब से लगातार साहित्य सेवा, 
में उनका तन मन अर्पित है।
साहित्यकारों में अच्छा सम्मान है,
साहित्य के प्रति सदा समर्पित हैं।।

देश विदेश तक पत्र पत्रिकाओं में, 
उनके लेख रचनाएँ प्रकाशित हैं।
हिन्दी साहित्य के असीम क्षेत्र में, 
उन्हें मिली सफलता आशातीत है।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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