फैलाना है भाईचारा - कविता - विशाल निरंकारी

मानव को हो मानव प्यारा, एक दूजे का बने सहारा।
छोड़कर जाति, छुआ-छूत को, फैलाना है भाई चारा।।

ऊँच-नीच की दीवारों को, आओ आज गिरा डालें।
मानवता हो धर्म हमारा, यह पैग़ाम फैला डालें।।
भाई बहन हैं आपस में सब, नहीं है कोई न्यारा।
छोड़कर जाति, छुआ-छूत को, फैलाना है भाईचारा।।

एक ख़ुदा है हम सबका, एक की सारी ख़ुदाई है।
एक ख़ुदा के बच्चे हैं हम, फिर ये कैसी लड़ाई है।।
जो समझेगा एक सभी को, ख़ुदा का होगा वो दुलारा।
छोड़कर जाति, छुआ-छूत को, फैलाना है भाईचारा।।

बैर, नफ़रत की दीवारों को, आओ आज गिरा डालें।
प्यार का दीपक ''विशाल'' सभी के दिलों में, आज जला डालें।।
आओ प्यार करें हम सब से, यह जन्म मिले ना दोबारा।
छोड़कर जाति, छुआ-छूत को, फैलाना है भाईचारा।।

मानव को हो मानव प्यारा, एक दूजे का बने सहारा।
छोड़कर जाति, छुआ-छूत को, फैलाना है भाई चारा।।

विशाल निरंकारी - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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