नारी - गीत - डॉ. देवेन्द्र शर्मा

भोले भगवन के मन में एक 
आया पूत विचार,
उन ने रची एक सुंदर रचना 
सृष्टि का शृंगार।
भेंट कर दिया मानवता को 
सुंदर वह उपहार, 
भरकर उसमें अंतर तम के
आँसू और अंगार।
आकर वह अंतर हृत रचना 
जग पर हो गई वारी, 
प्रभु ने उसको बड़े प्यार से
दिया नाम था नारी।।

आँसू लेकर अपने आँचल 
माँ भग्नि बन जाती,
पुत्री बनकर वह तो जग को
भेंट नई दे जाती। 
माता बनकर अपने पूतों 
गाय बने अलब्याई, 
उनकी रक्षा के हित में वह 
बने सिंहनी जाई।
वही बर्फ़ से ज्वाला बनने 
की करती तैयारी, 
प्रभु ने उसको बड़े प्यार से 
दिया नाम था नारी।।

अरुंधति अनुसूया यशोदा 
कौशल्या बन जाती, 
ब्रह्मा विष्णु शिव शंकर को 
पलनों में है झुलाती। 
वह ही नारी वक़्त पड़े जब 
दुर्गा बन आ जाती, 
काली रणचंडी बनकर के 
असुर रक्त पी जाती।
अपनी संतानों के हित में 
बनती वह ना क्या री,
प्रभु ने उसको बड़े प्यार से 
दिया नाम था नारी।।

वह ही आकर इस जग में फिर 
क्या-क्या वेष धरे,
दुर्गावती कर्णावती हाड़ी 
पद्मिनी मान भरे। 
पूत पति दोनों को अपने 
देशों बलि करे। 
जीजा बाई लक्ष्मी बाई 
बन करे गर्व खरे,
इन नवरात्रों आवाहन सुन 
उसी रूप तू आ री। 
प्रभु ने जिसको बड़े प्यार से 
दिया नाम था नारी।।

डॉ. देवेन्द्र शर्मा - अलवर (राजस्थान)

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