तस्वीर - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

मन की आँखों से देखकर
बड़े प्यार से मैंने उसकी
ख़ूबसूरत सी तस्वीर बनाई,
तस्वीर ऐसी कि मुझे ही नहीं
हर किसी को बहुत भाई।
आश्चर्य मुझे भी हुआ बहुत
ऐसी तस्वीर भला मुझसे 
कैसे स्वमेव बन ही पाई,
ख़ैर! मुझे तो वो ताजमहल से
कहीं कमतर नज़र नहीं आई।
पर हाय रे मेरी क़िस्मत
तूने ये कैसी कलाबाजी खाई,
तस्वीर ने अपने रंग दिखाए
खूबसूरत रंग दम तोड़ने लगे।
ख़ूबसूरत सी तस्वीर भी अब 
शनैः शनैः बदरंग होने लगी,
उसके अहसास की खुश्बू भी अब
मेरे मन से थी खोने लगी।
और तो और उसका चेहरा भी
उसकी तरह ही स्याह दिखने लगा,
शायद उसकी असलियत का
पर्दा अब धीरे धीरे उठने लगा।
दोष उसका या तस्वीर का नहीं
दोष मेरी सोच कल्पनाओं का था,
मैं ही बिना सोचे समझे बस
ऊपर ऊपर ही था उड़ने लगा।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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