मिटा मूल से, तू शूल ऐसे भ्रष्टाचार का।
रोपित कर, तू पादप ऐसे शिष्टाचार का।।
शिशुओं में, बीजारोपण कर संस्कार का।
सभ्य बनें, तब होगा कल्याण संसार का।।
जीवन तो संभलेगा ही, कर हित देश का।
परहित सम धर्म है, कर तू संहार शत्रु का।।
नियम व संयम से रह, ले सीख त्याग का।
बनकर के सच्चरित्र, भला कर मित्र का।।
परिवार मध्य समरस, ला सेवा भाव का।
उचित विचार ला, भाव जगा उपकार का।।
ना दुखी होवे मन कर, ऐसे उपचार का।
धर्म कर्म से कमा, मनकर तू व्यापार का।।
अड़चनें आएगीं, उद्यम कर प्यार का।
मंगल होगा, लाभ मिलेगा उपकार का।।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर, एटा (उत्तर प्रदेश)