भोलापन - कहानी - अजय गुप्ता "अजेय"

सचमुच बचपन बहुत भोला होता है। उसकी अपनी एक अलग दुनिया होती है जहाँ भोलापन प्यार और संवेदना होती है। कुछ ऐसी ही कहानी है श्याम की जिसे प्यार से सब लोग गोलू कहकर पुकारते थे।
जलेसर तहसील से करीब ४ किलोमीटर के फ़ासले पर सावनपुर नाम का एक गाँव है जिसमें सभी जातियों की ३० बाखर है। लोगों के पास छोटी छोटी खेती है जिस पर पुस्तैनी तरीके से खेती होती है। गाँव के प्रधान के ट्यूबवेल से अधिकांश खेतों में पानी लगता है जिसके मुँह माँगे दाम प्रधान रामसिंह बसूलते है इसके अलावा दक्खिन में एक बंबा बहता है जिसमें कभी कभार पानी आता है और पानी आने पर किराया बच जाता है। 

इसी गाँव में कल्लू धीमर रहता है जिसके पास २ बीघा ज़मीन है जिससे बमुश्किल साल भर खाने को अनाज, जानवरों के लिये भूसा हो पाता है अतः घरख़र्च को पूरा करने के लिए जलेसर में घंटा ढलाई भट्टी पर उसे भोर से तपना पढता है। इसी प्रकार गाँव के सभी लोग खेती के साथ आसपास के शहरों में काम करके घर का ख़र्चा पूरा करते हैं।
इन सबसे बे-ख़बर कल्लू का बेटा गोलू पौ फटते ही खेत की मेड़ पर आम के पेड़ के नीचे आकर दूर तक फैली हरियाली को निहारता और मिट्टी का घरौंदा बनाता है। एकदिन पेड़ के नीचे खेलते समय ठंडी पुरवाई चलने लगी और वह पेड़ की जड़ो को सिरहाना बनाकर लेट गया।
थोड़ी देर बाद बारिश होने लगी और लाख कोशिश के बाद बह भीगने लगा तभी उसे चूँ चूँ की आवाज़ सुनाई दी। उसने इधर उधर देखा फिर जब ऊपर की ओर देखा तो सारा माजरा समझ आ गया। उसने आव देखा न ताव ओर पेड़ पर चढने लगा लेकिन उसके छोटे छोटे हाथों में पेड़ का मोटा तना नहीं आ रहा था ओर जब बह पेड़ की खुरदरी छाल की पपड़ियों को पकड़कर ऊपर चढ़ता तो फिसल जाता। इन प्रयासों में उसके दोनों घुटने कोहनी छिल गए और खून रिसने लगा लेकिन चूँ चूँ की करुण पुकार से उसका कोमल मन उसको फिर से चढने को आतुर बनाता है। थोडी देर के प्रयास से बह आख़िरकार पेड़ पर चढ गया और सरक सरक कर उस डाली के पास पहुँच गया जहाँ गौरैया के बच्चे थे लेकिन जैसे जैसे बह उनके नज़दीक आने की कोशिश करता वे डर से पीछे होते जाते। लेकिन गोलू ने हार न मानी। बह नीचे उतरा और अंडुआ का पत्ता तोडकर ऊपर लाया और गौरैया के बच्चों को पत्ते से ढककर उन्हें बारिश में भीगने से बचाने लगा। उसके ख़ुद के कपड़े पूरे तर हो चुके थे लेकिन अपने दर्द को भूल अपने से छोटे बच्चों को बचाने में उसे बहुत आनंद आ रहा था और वे भी अब उससे नहीं डर रहे थे क्यूँकि उन्हें उसकी मंशा का ऐहसास हो गया था। उसी समय गोलू को जोर की छींक आयी और सपना टूट गया। उसने ऊपर डाली की तरफ देखा, बहां गौरैया के बच्चे नहीं थे और अपने ऊपर हाथ फिराया तो कपडे़ सूखे हुए थे न हीं उसके घुटने कोहनी छिलीं थी,
लेकिन नींद के आलोक में देखे स्वप्न की खुशी और रोमांच अभी भी उसकी वाल मुस्कुराहट में साफ़ साफ़ झलक रहा था।
सारांश:-
"स्वप्नलोक में जन्मते, विचार परोपकार।
जब जब मन में जागे, आचार तदानुसार।।"

अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)

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