मैं मुझसे कहता हूँ - कविता - तेज देवांगन

मैं मुझसे कहता हूँ, तू मुझमें कुछ कर,
सपने छोटे ही सही, पर उसकी राह पकड़।
ना देख उड़ जाने की, पहले ज़मीन से तो लड़,
ज़माना बदल रहा है, उससे थोड़ा तो डर।
मैं मुझसे कहता हूँ, तू मुझमें कुछ कर।।

सोते उन सपनों से, आगे तू बढ़,
ना बैठ खाली, अब राह गुज़र।
चमकने से पहले, ज़रा सूरज सा तो जल,
उड़ने से पहले, पत्तों की तरह झड़।
मैं मुझसे कहता हूँ, तू मुझमें कुछ कर।।

बैठी दरिया का कोई मोल नहीं,
सुख जाएगा तन इसकी छोर नहीं।
अब ना रुक, लगा जोर और बढ़,
जीना है तो कुछ कर के जी, या मर।
मैं मुझसे कहता हूँ, तू मुझमें कुछ कर।।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos