कुछ समय जीता
और कुछ लोग हार गए
हारने वाला अक्सर पीछे मुड़कर
और जीतने वाला आगे झुककर देखता है।
बहुत हीं चित्कार पूर्ण आवाज़
रुदन को रोककर निकल गई
जीत की हुंकार...
सीने को छलनी कर गई।
क्यों जीता है शरीर?
जब कि सर्वविदित है
ये निरंतर मौत के पास हीं जा रहा है।
खैर जीवन है जीतेगा हारेगा
क्योंकि समय की साख पर
निरंतरता सदैव विश्राम नहीं
नृत्य मुद्रा को बदलती रहती है
और परबश जीवन...
उसकी थाप पर थिरकने को मजबूर।।
विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)