गूँज उठी रणभेरी - कविता - गोलेन्द्र पटेल

काशी कब से खड़ी पुकार रही
पत्रकार निज कर में कलम पकड़ो,
गंगा की आवाज़ हुई
स्वच्छ रहो और रहने दो।
आओ तुम भी स्वच्छता अभियान से जुड़ो न करो देरी,
गूँज उठी रणभेरी।

घाटवॉक के फक्कड़ प्रेमी
तानाबाना की गाना,
कबीर तुलसी रैदास के दोहें
सुनने आना जी आना।
घाट पर आना - माँ गंगा दे रही है टेरी,
गूँज उठी रणभेरी।

बच्चे बूढ़े जवान
सस्वर गुनगुना रहे हैं गान,
उर में उठ रही उमंगें
नदी में छिड़ गई तरंगी-तान।
नौका विहार कर रही है आत्मा मेरी,
गूँज उठी रणभेरी।

सड़कों पर है चहलपहल
रेतों पर है आशा की आकृति,
आकाश में उठ रहा है धुआँ
हाथों में हैं प्रसाद प्रेमचंद केदारनाथ की कृति।
आज अख़बारों में लग गई हैं ख़बरों की ढेरी,
गूँज उठी रणभेरी।

पढ़ो प्रेम से ढ़ाई आखर
सुनो धैर्य से चिड़ियों का चहचहाहट,
देखो नदी में डूबा सूरज
रात्रि के आगमन की आहट।
पहचान रही है नाविक तेरी पतवार हिलोरें हेरी,
गूँज उठी रणभेरी।

धीरे धीरे
ज़िंदगी की नाव पहुँच रही है किनारे,
देख रहे हैं चाँद-तारे।
तीरे-तीरे
मणिकर्णिका से आया मन देता मंगल-फेरी,
गूँज उठी रणभेरी।

गोलेन्द्र पटेल - चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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