कर्म - कविता - बृज उमराव

कर्म तुम्हारा कार्य क्षेत्र है,
कर्म से कम स्वीकार नहीं। 
अथक असीमित मेहनत से कम,
कुछ भी अंगीकार नहीं।। 

भरोसा अपनी बाहों का,
मष्तिष्क करे इसमें सहयोग। 
परिणाम मिले संतोषजनक,
पाएँ मधुर सुखद संयोग।। 

भूले से भाग्य साथ दे दे,
क़िस्मत का ताला खुल जाए। 
अपेक्षा में वह चीज़ न हो,
उम्मीद से ज़्यादा मिल जाए।। 

हौसला उमंगें भरता हो,
निराशा का कोई नाम नहीं।
सीना तान के कर्मठ बन,
झुकने का कुछ काम नहीं।। 

प्यार प्रेम का संबल हो,
उत्साह का दीपक जला रहे। 
आस्था औ विश्वास की धारा,
प्रवाह जल सा बना रहे।। 

कर्म का फल तो सबको मिलता,
सत्कर्मों की सद्गति जाने। 
अगर कष्ट है जीवन में,
पूर्व जन्म की दुर्गति माने।। 

कर्मठ बन चलते जाएँ,
साथ रहे आशा विश्वास। 
क़दम क़दम कर बढ़ते जाएँ,
पूरी होगी हरदम आश।। 

कृपा मिले गुरुदेव की,
मातृ पितृ आशीष। 
ताज सफलता का सजे,
हर्षित देवाशीष।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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