ताउते तूफ़ान क़हर - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जाने कैसा समय यह, नित्य नया तूफ़ान।
रे मानव अब भी समझ, मानो प्रकृति महान।।

मानो सत्ता प्रकृति की, तजो स्वार्थ मद मोह।
मन निसर्ग विनती करो, विनत लक्ष्य आरोह।।

भूलोगे निज मनुजता, दानव मन अतिरेक।
आएगी आपद प्रकृति, जीवन में व्यतिरेक।।

भूकम्पन या जलजला, जल विप्लव तूफ़ान।
भूमि पतन पावक क़हर, कर्तन भू अवसान।।

क्षत विक्षत कर स्वार्थ में, मातु प्रकृति अविराम।
हो निसर्ग अम्फाम या, ताउते कोहराम।।

कोरोना की त्रासदी, झेल रहा है लोक।
फिर भी भौतिक सुख प्रबल, कौन हरेगा शोक।।

महाप्रलय की त्रासदी, आहट है संसार।
क्षिति जल पावक भू अनिल, उद्यत जन संहार।।

नश्वर तन सुख सम्पदा, लालायित इन्सान।
प्रीति रीति यश त्याग पथ, तजा बना शैतान।।

परमारथ भूला मनुज, शील विनय सद्धर्म।
प्रकृति मातु की कोख को, नित कर्तन दुष्कर्म।।

जीवन है दुर्लभ मनुज, जीवों में अनमोल।
पलभर का है सारथी, किन्तु करे विषघोल।।

शुद्ध भाव पावन हृदय, जीओ पथ सत्काम।
बचो तबाही ताउते, दो तूफ़ान विराम।।

तहस नहस गुजरात को, महाराष्ट्र कोहराम।
क़हर तूफ़ान ताउते, गोवा ख़ुशी हराम।।

लखि निकुंज उजड़ा चमन, त्रासद कुदरत कोप।
अपराधी हम हैं स्वयं, क्यों कुदरत आरोप।।

अब भी जागो रे मनुज, तजो मनुज मन स्वार्थ।
नद पर्वत भू सिन्धु नभ, देवतुल्य परमार्थ।।

रक्षण द्रुम गिरि सम्पदा, भू नभ पावक सिन्धु।
प्राण वायु फिर से बहे, प्रकृति बनाओ बन्धु।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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