संकट में सिर्फ़ ईश्वर साथी - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

बेशक संकट के समय ईश्वर से बड़ा साथी कोई नहीं होता।
कभी कभी ईश्वर अपना प्रतिनिधि किसी न किसी रूप में मदद करने भेज देते हैं, या दीन जन के अंदर ही सद्बुद्धि के रूप स्थापित होकर सकारात्मक कार्य की प्रेरणा देते हैं दयालु प्रभु।

जब जीवात्मा संकट में निष्कपट भाव से सच्चे मन से ईश्वर को याद करता है और वह इस अवस्था में आर्त भक्तों की श्रेणी में आ जाता है, तब उस जीवात्मा अर्थात मनुष्य को उसके अंतः करण के भीतर विराजमान सर्व व्यापक पूर्ण ब्रह्म परमात्मा से सहायता अवश्य मिलती है।
बड़े-बड़े संकट के समय ईश्वर को याद करने से हम उस संकट से लड़ने की शक्ति पाते हैं या यूँ कहें कि संकट में सिर्फ़ ईश्वर ही साथी होता है।

ईश्वर को स्मरण करने से हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है और इस तरह ईश्वर को याद करने से हम हर संकट से उबर पाते हैं। वैसे तो ईश्वर का स्मरण हर पल करना चाहिए, उनकी सत्ता को कभी नहीं भूलना चाहिए, दुःख हो या सुख, संकट हो या खुशी।

ईश्वर को याद करने से असीम शांति प्राप्त होती है।
प्रार्थना का सरल अर्थ है भगवान और मनुष्य के बीच विश्वास भरी बातचीत। प्रार्थना द्वारा हम ईश्वर से संपर्क स्थापित करते हैं। प्रार्थना में बहुत शक्ति है अगर आप इस में विश्वास करते हैं। प्रार्थना अंतर्मन की ईश्वरीय पुकार है। भावपूर्ण ह्रदय से निकली हुई है ऐसी पुकार है जिसका व्यक्ति के अपने तन मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्रार्थना ईश्वरी शक्ति की कृपा के लिए भक्तों के व्याकुल हृदय से निकली एक ऐसी करुण पुकार है जो उसको सब प्रकार के संतापों से मुक्त कर देती है व सुरक्षा कवच प्रदान करती है। यह मन की पुकार है।

प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता कि सिर्फ़ बैठ कर कुछ मंत्रों का जाप करें या उच्चारण करें। इसके लिए आप निर्मल शांत और ध्यान अवस्था में हों। पहले ध्यान फिर प्रार्थना तभी प्रार्थना प्रभावी होगी।
जब आप प्रार्थना करते हैं तो आपको पूर्ण रूप से निमग्न होना चाहिए। यदि मन पहले से कहीं भटक रहा है तो वह प्रार्थना नहीं हुई।

जब आपको कोई दुःख होता है तो आप एकाग्र चित्र हो जाते हैं। इसलिए दुःख में लोग अधिक सुमिरन करते हैं, यह प्राकृतिक सत्य है।
प्रार्थना तब होती है जब आप ईश्वर के प्रति कृतज्ञता महसूस करते हैं या आप अत्यंत निराशा या निर्बल महसूस करते हैं, इन दोनों ही परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाती है। सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य स्वीकार होती है। ईश्वर अवश्य साथ देता है संकट में, मेरा ऐसा विश्वास है।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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