कर्म ही पूजा है - लेख - शेखर कुमार रंजन

खुश रहना चाहते हो, अपनी मंज़िल को पाना चाहते हो, जीवन में सफल होना चाहते हो तो मोह का त्याग, सुख- दुःख, फ़ायदे और नुकसान को छोड़कर जीत की तैयारी करो, फल की चिंता किए बिना केवल कर्म करों, हर प्रकार के भय की भावना, शुभ-अशुभ का डर आदि का त्याग कर दो, गुस्सा पर नियंत्रण करो, अपनी इच्छाओं को ग़ुलाम बनाओ साथ ही ख़ुद में निर्णय क्षमता का विकास करो। अपने कार्य को ऐसे करो जैसे कि वह कार्य आप नहीं बल्कि परमात्मा कर रहे हैं। कर्म योग को अपना लेना ही तुम्हारा कर्तव्य है, कोई तुम्हारा साथ भी न दे और तुम्हारी आलोचना भी करें तो फिर भी बिना कुछ सोचे बस तुम अपना काम करते जाओ। बिना किसी आशा, दया और पछतावा के अपना काम करते चलो। ख़ुद के धर्म और कर्म को दूसरे से अच्छा मानो अर्थात तुम जो कर रहे हो उसे पूरे मन से करो। यह स्मरण रखों की शरीर से ज़्यादा शक्तिशाली है इन्द्रियाँ, इंद्रियों से ज़्यादा शक्तिशाली है मन और मन से ज़्यादा शक्तिशाली है बुद्धि और बुद्धि से ज़्यादा शक्तिशाली हो तुम अर्थात तुम्हारी आत्मा। इसलिए अपनी आत्मा से इन सबको बस में कर लो और अपने शरीर पर विजयी प्राप्त करके सफलता प्राप्त करो अर्थात अपने बुरे कर्मों का त्याग करो। इसके लिए कर्म और ज्ञान दोनों ज़रूरी है, तुम्हें सिर्फ़ कर्म करने का अधिकार मिला है तुम परमात्मा के एक बंदा हो।

जो मनुष्य किसी भी कर्म के फल व सुख-दुःख से दूर होकर कर्म करते हैं वही सबसे अच्छा माना जाता है, कोई भी कार्य करने से पहले सोचो कि कर्म मैं नहीं मेरे ईश्वर करते हैं, किसी से कुछ भी सीखना है तो सबसे पहले उसके प्रति आदर होना चाहिए और किसी प्रकार की लालच नहीं होनी चाहिए, और बुरी भावना भी नहीं होनी चाहिए। कोई भी कर्म करने से पहले तुम्हें आलस रोकेगा यदि तुम नहीं रूके तो समझो तुम विजय अवश्य प्राप्त करोगे, सभी जीव जंतुओं को परमात्मा का हिस्सा मानो क्योंकि हर चीज़ में परमात्मा बसते हैं।

महान पुरूष अपना हर काम ख़ुद को साफ़ करने और दूसरों के कल्याण करने के लिए ही करते हैं। शरीर को कितना भी सुख दे दो इसकी इच्छाएँ कभी पूर्ण नहीं होती इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को शरीर के सुख के बारे में नहीं सोचना चाहिए। शरीर के नाश होने से पहले क्रोध को नाश करने के बारे में सोचो और यह बात स्मरण रखना की आत्मा न हो तो शरीर निर्जीव चीज़ ही है और यही कारण है कि शरीर हमेशा स्थिर रहना ही पसंद करता है।

जो इंसान अपने मन को जीत लेता है वह सबसे बड़ा योद्धा होता है, चंचल और हठीले मन को एक जगह पर रोक दो, और यह करने के लिए तुममें आत्मविश्वास होना चाहिए क्योंकि आत्मविश्वास ही ऐसी चीज़ है जिसके रहते तुम किसी कार्य को असम्भव से सम्भव बना सकते हो। लागातार मेहनत करना इंसान की सबसे बड़ी कल्याणकारी योजनाओं में से एक है। तुम्हें मोह माया में फँसे बिना कार्य करने चाहिए क्योंकि यह सद्पुरुष की निशानी है, तुम कठिन परिश्रम करके अपने मंज़िल को प्राप्त कर सकते हो, इसीलिए बस सपने संजोकर सिर्फ़ बैठो नहीं बल्कि सोचो कि किस तरह कठिन परिश्रम करना है। नकारात्मक विचार वाले लोगों से दूर रहना बहुत ही ज़रूरी है, सकारात्मक सोच वाले लोगों की कद्र करनी चाहिए। सही रास्ते पर चलने वाले एक दिन मंज़िल तक पहुँच ही जाते हैं, ऐसा कौन सा ज्ञान है जो तुम्हें तुम्हारी मन्ज़िल तक पहुँचाएगा इतना जान लेना ही आवश्यक है। वरना ज्ञान तो अनंत हैं।

यदि तुम अपने सफलता के रास्ते पर सही हो तो तुम्हें सफलता ज़रूर मिलेगी। महान लोगों का सबसे अच्छा गुण यह है कि वह कठिन परिश्रम करते हैं पर उन्हें पता ही नहीं होता है कि वह कितनी ज़्यादा मेहनत करते हैं। इसलिए तुम्हें अपने लगातार परिश्रम के साथ अपनी मंज़िल प्राप्ति के लिए अडिग रहना चाहिए, समभाव का भाव ख़ुद में समाहित कर लो क्योंकि यह होना अतिआवश्यक है। तुम आज जितना कठिन परिश्रम करोगे कल उतना ही अच्छा फल प्राप्त कर पाओगे। यदि तुममे कठिन परिश्रम करके भी कुछ पाने का लोभ नहीं हैं तो तुम बहुत प्रसन्न रहोगे। कभी भी कुछ बढ़िया करने से पहले भय नहीं करना और इंद्रियों को बस में करना व परमात्मा को महसूस करना, धैर्य रखना और दूसरे की गलतियों को क्षमा कर देना, काम क्रोध और लोभ को त्याग देना। साथ ही कर्म को तप समझकर करना। हल्का भोजन (सात्विक भोजन) करना और अकेले रहकर ज्ञान अर्जित करना और यह बात हमेशा स्मरण रखना की व्यक्ति जाति धर्म से नहीं बल्कि गुणों से ब्राह्मण होता है। (यहाँ "ब्राह्मण" शब्द जाति सूचक नहीं बल्कि विचार सूचक है) और हम सब यह जानते ही हैं कि कर्म ही पूजा है इसलिए आज से पूजा प्रारंभ अर्थात कठिन परिश्रम करना शुरू।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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