प्रेम की मशाल - कविता - महेन्द्र सिंह राज

प्रणय निवेदन करते करते, परिणय तक ले आया तुमको।
पर परिणय के पहले मैंने, कभी न हाथ लगाया तुमको।।
 
यही हमारी संस्कृति प्यारी, यही हमारी पुरा सभ्यता।
वचन दिया तो उसे निभाया, परिणय कर अपनाया तुमको।।

पास भी आया बातें भी की, हाल चाल भी पूछा तेरा।
पर संयम ख़ुद पर रखा, कभी न चोट पहुँचाया तुमको।।

दुनिया कहती है कहने दे, सच्चा था तेरा मेरा मन।
तूने ज़िद ना किया कभी, ना ग़म में कभी डुबाया मुझको।।

शैशव काल से युवा होने तक, एक दूजे को दिल से चाहे।
पर हमने कभी ज़िद ना की, ना ही कभी सताया तुमको।।

दोनों कुल की मर्यादा का नित, हम दोनों ने ध्यान रखा।
ना तूने कभी भुलाया मुझको, ना मैंने कभी भुलाया तुमको।।

वही प्रेम, प्रेम सच्चा है, जिसमें वासना की दुर्गन्ध न हो।
प्रेम में मेरे कपट न था, ना ज़िद कर कभी रुलाया तुमको।।

सुनों ध्यान धर मेरी बातें, दुनिया के सब प्रेम पथिक।
मेरा प्रेम निर्मल पवित्र था, कभी नहीं भटकाया उनको।।

प्रेम कंचन है काँच नहीं, जो तपकर होता है स्वर्ण भस्म। 
तुम भी शुचि हृदय पवित्रा थी, कभी नहीं बहकाया मुझको।।

हम मिशाल बने जग में, हो परिणय जीवन सुखी हमारा।
ना तूने कभी गिराया मुझको, ना मैंने कभी गिराया तुमको।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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