कांहा किरपा तू बरसाय,
मार्ग सारो सुलभ हो जाए।
चैन की बंशी तू बजाए,
आनंद घट घट में हो जाए।
सद्भाव सौहार्द की गंगा,
रंगरस बरसाता जा।
प्रित प्रेम को रंग चढ़ा कर,
दुनिया में प्यार लुटाता जा।
सुण ले दुनिया रा करतार,
लगा दे खुशियां रा अंबार।
तू है सबको पालनहार,
तेरी है लीला अपरंपार।
चींटी न कण हाथी न मण,
हे तारणहार हाँ तेरी शरण।
तू बेड़ो पार लगा दीजे,
सारा संकट मिटा दीजे।
रस्ता रस्ता हर राही के,
खुशियाँ रा फूल खिला दीजे।
महकतो सदा जीवन कर दे,
जन जन प्रेम जगा दीजे।
रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)