मेरी ग़लतियों के कारण मैंने उसको खो दिया - कविता - संदीप कुमार

हम दोनों के दरमियान बेपनाह प्यार था,
दोनों को एक दूजे पर बहुत एतबार था।
हर रोज़ लड़ते थे हम एक दूजे से बहुत,
लेकिन एक दूजे का साथ स्वीकार था।

एक दूजे को देखे बिना रह नहीं सकते थे,
दोनों एक पल की दूरी सह नहीं सकते थे।
हम दोनों एक दूजे के लिए सब कुछ थे,
सोचा था कभी हम बिछड़ नहीं सकते थे।

हाथ थाम लिया था उसका अपने हाथ में,
बस अच्छा लगता था सिर्फ़ उसके साथ में।
इतना हक़ था हम दोनों का एक दूजे पर,
कि नींद खुलते कॉल करते थे आधी रात में।

हम एक दूजे को बस अपना मान चुके थे,
सच होगा हर सपना बस ये जान चुके थे।
कितना प्यार था हम दोनों के बीच नहीं पता,
लेकिन एक दूजे की धड़कन पहचान चुके थे।

हर रोज़ हम दोनों दिल की बात करते थे,
लोगों से चोरी छिपकर मुलाक़ात करते थे।
वक़्त का हमको पता ही नहीं रहता था,
बातें सुबह से दिन, दिन से रात करते थे।

फिर एक दिन

उसका रिश्ता तय कर दिया उसके परिवार ने,
न जाने किसकी नज़र लगी दोनों के प्यार में।
दोनों खोए रहे एक दूजे की मोहब्ब्त में हर पल,
और बैठे रहे उसकी शादी टूटने के इंतज़ार में।

हमारा प्यार हमारे ख़्वाबों के नशे में चूर था,
एक दूजे के बिना रहना हमको नामंज़ूर था।
लेकिन कब बाज़ी हाथ से निकली पता नहीं,
शायद यही इश्क़ करने वालों का दस्तूर था।

उसकी शादी की पहली रात दोनों रोए थे,
एक झूठी उम्मीद पर हम दोनों खोए थे।
पूरी रात हमने क्या बात की हमें पता नहीं,
जागते हुए आँसूओं से सारे ख़्वाब धोए थे।

उसकी हाथों की मेहंदी में उसका नाम था,
लेकिन दिल में मेरे लिए ही बस पैग़ाम था।
आग़ाज़ बहुत अच्छा था हमारे इश्क़ का,
लेकिन बहुत ही बुरा इश्क़ का अंज़ाम था।

अब आँगन में उसकी बारात आ चुकी थी,
वो भी आँसूओं की नदियाँ बहा चुकी थी।
मैं खड़ा था पागलों सा उसका हाथ पकड़,
आँखों के आगे दिन में रात छा चुकी थी।

उसने कहा मैं हर दर्द तक़लीफ़ सह लूँगी,
तुम्हारे साथ पानी की तरह मैं बह लूँगी।
मुझको ले जाओ अभी अपने साथ तुम,
जैसे रखोगे, जिस हाल में मुझको रह लूँगी।

मैं सोचता ही रहा, उसका हाथ छूट गया,
जन्मों का साथ, बस एक पल में टूट गया।
वो चली गई रोते हुए किसी और के पास,
और मैं खड़ा अंदर ही अंदर बहुत टूट गया।

वो जाने लगी तो, उससे ज़्यादा यहाँ मैं रोया।
पूरी रात लिखता रहा, बिल्कुल न मैं सोया।
अपनी ग़लती पर, बस पछतावा करता रहा,
समझ नहीं पा रहा, उसको मैंने क्यों खोया।

अब अकेले में तन्हा, उसको याद मैं कर रहा हूँ,
उसकी याद में अब, घुट घुट कर मैं मर रहा हूँ।
मेरा क्या होगा आगे, ये तो मुझको पता नहीं,
बस उसकी खुशी की दुआ दिन रात कर रहा हूँ।

बस अब एक ही बात मुझको तड़पाती है कि,
मेरी ग़लतियों के कारण मैंने उसको खो दिया।

संदीप कुमार - नैनीताल (उत्तराखंड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos