ग़मों की परछाई में,
अपनी हर तन्हाई में,
दिखते,
उनके चेहरे।
वो सूनी बाहों में,
अपनी हर राहों में,
साथ लिए,
चलते उनके चहरे।
दिन के अवसान में,
तारों भरे आसमान में,
चमकते,
नज़र आते उनके चेहरे।
साथ चलते भी,
कुछ क़दम।
दूर करते भी,
कुछ ग़म।
पर,
जब देखता उन चेहरों में,
अपनापन।
टूट जाता मेरा,
सारा भ्रम।
खींच जाता,
उन चेहरे से मेरा मन।
तब,
और भी प्यारे
नज़र आते,
उनके चेहरे।
छा जाते आँखों में,
खिलते फूल से,
दीप्तिमय मोती-सा प्यार लिए।
प्रवीन "पथिक" - बलिया (उत्तर प्रदेश)