उदात्त - कविता - विनय "विनम्र"

लहू में है आग!
या आग में लहू है सना,
जल रहे अस्तित्व में
तरलता क्या है मना?
ऋतुओं में भी बदलाव का
चलता निरंतर है सफ़र,
पर यहाँ बदलाव का हीं
बिल्कुल बदलना है मना।
कैसे कहें हम धरा का
सबसे विशिष्ट कृतार्थ हैं,
सब जीव हैं बस निम्नवत,
हम प्रकृति जैसे उदात्त हैं।

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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