रंगों का त्यौहार - कविता - गणपत लाल उदय

लो आया फिर रंगों का त्यौहार,
गीत खुशी के सब गाओ मल्हार।
पक्के रंगों से होली नही खेलना,
गुलाल लगाकर मनाना त्यौहार।। 

अब ना रहा पहले जैसा हुड़दंग,
हँसी और मज़ाक सहने का दम।
अब नही बजाते कोई ढोल चंग,
लगे है सब इन मोबाइलों मे हम।। 

अब नही है पहले जैसा स्वभाव,
उमंग व रंग लगाने का व्यवहार।
नही आते परदेशी भी अपने घर,
ये रिश्ते भूल रहे अपने परिवार।। 

दिल की कड़वाहट मिटालो सब,
इन्सानियत का पाठ पढ़लो अब।
गिले-शिकवे भूल कर गले लगो,
अभद्रता से होली खेलो ना अब।। 

फाल्गुन मास में आता यह पर्व,
जीवन शिक्षा का रंग भरो अब।
अनेकता में एकता दर्शाता पर्व,
भाई चारा संदेश पहुँचाओं सब।।

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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