खोती हँसी - लेख - सुधीर श्रीवास्तव

सामान्य सी बात और शब्द हँसी हमारी ज़िन्दगी और खुशहाली कि हिस्सा है, जो समय और आधुनिकता की चाशनी में लिपटी भागमभाग भरी ज़िन्दगी में खोता जा रहा है। हम हँसना जैसे भूलते जा रहे हैं। हमारे चेहरों की रौनक जैसे खोती जा रही है। अब तो खुलकर हँसने की बात पर भी हम सिर्फ़ मुस्कराकर रह जाते हैं। जैसे हँसने की भी कीमत चुकानी हो। वैसे एक बात तो तय मानिए कि हँसने की कीमत भले न चुकाना पड़े पर न हँसने की कीमत हमें चुकाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। समय की बढ़ती कमी और जीवन की निर्भरता के मशीनीकरण की ओर बढ़ते जाने के कारण हम सभी अपने, परिवार, समाज के लिए जैसे समय निकाल पाना ही भूलते जा रहे हैं।

कहा जाता है कि अच्छे स्वास्थ्य और माहौल दोनों के लिए हँसना प्रकृति का उपहार है। हँसने मात्र से पूरा का पूरा शरीर और हर अंग में उर्जा का संचार होता है, स्फूर्ति आ जाती है, रक्तसंचार बढ़ जाता है, जो हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करता है, साथ ही मन हल्का हो जाता है। मानसिक रूप से भी हम काफी हद तक खुशनुमा महसूस करते हैं। जिसका असर हमारे परिवार, आस पास के लोगों, समाज और संसार पर भी होता है।

विडंबना देखिए कि आज हँसने हँसाने के लिए अब लाफिंग क्लब बनाने पड़ रहे हैं। पहले के समय में लोग अनायास ऐसे माहौल पैदा कर लेते थे, चुहलबाजियों से नहीं चूकते थे। छोटे छोटे आयोजन में भी बडे़ छोटे सबकी अलग महफ़िलें स्वच्छंद हँसी का पर्याय होती थी, परंतु अब सब खोता जा रहा है। कारण की अब किसी के पास समय नहीं है। इसीलिए बीमारियों का साम्राज्य भी बढ़ता जा रहा है। आपसी संबंधों पर भी असर पड़ रहा है। कारण बहुत हो सकते हैं, मगर हम हँसना भूलते जा रहे हैं। जिसके बहुतेरे दुष्प्रभाव भी हो रहे हैं। हम सब महसूस भी कर रहे हैं, परंतु लापरवाह भी हैं। जिसका दूरगामी परिणाम निश्चित है। ऐसा ही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हँसना-हँसाना भी हमारे पाठ्यक्रम में शामिल करने की विवशता होगी।

अब भी वक़्त है कि हम समय रहते चेत जाएँ अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हमारा न हँसना, खिलखिलाना वैश्विक समस्या बन हमें मुँह चिढाएगी और हम सिर्फ़ अपनी आधुनिकता का मुलम्मा ओढ़ अपनी करनी पर पछताएँगे और हँसने, मुस्कराने, खिलखिलाने के मशीनी सूत्र तलाशने की कोशिश करेंगे साथ ही अपनी मूर्खता पर अपने ही बाल नोचेंगे।

आपको मेरी बात कड़ुवी ज़रूर लगी होगी, तो भी कोई बात नहीं, मुझसे कोफ़्त हो रही होगी। सब चलेगा, मगर आप हँसना मत क्योंकि आप की इज़्ज़त चली जाएगी, जो आप के लिए ख़ुद, परिवार, समाज और संसार से अधिक प्यारा है। ऊपर से आप भी उन चंद बेवकूफ़ लोगों का हिस्सा बनने भी बच जाएँगे, जो बात बात पर हँसते खिलखिलाते हैं, परेशानी में भी ख़ुशियाँ तलाशने की कोशिशें लगातार करते हैं। मगर हम तो फिर भी यही कहेंगे कि अब चलते चलते हँस भी दीजिए न, मुँह छिपाकर ही सही।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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