श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)
बग़ावत - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
शुक्रवार, मार्च 12, 2021
कौन होगा जो यूँ ही बग़ावत करता है,
बिना कारण कौन ख़िलाफ़त करता है।
दरारें आ जाती है रिश्तों में कभी कभी,
ऐसे कौन शिकवा शिकायत करता है।
मज़लूमों पर हो सितम सरे-ए-बाज़ार,
उनकी तो दिलेर ही वक़ालत करता है।
सज़ा देर सवेर उन्हें मिलती है ज़रूर,
जो जान बुझकर ये गफ़लत करता है।
सिक्कों की खनक तो सब कुछ नहीं,
'निर्वाण' यहाँ सबकी इज़्ज़त करता है।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विषय
सम्बंधित रचनाएँ
मौसम है हर साल बदलते रहता है - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर'
मार डालेंगी हमें उनकी यही अठखेलियाँ - ग़ज़ल - सैय्यद शारिक़ 'अक्स'
कैसे आवाज़ हमारी वो दबा सकते हैं - ग़ज़ल - अरशद रसूल
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
इक ख़ुमारी है बे-क़रारी है - ग़ज़ल - रोहित सैनी
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर