बग़ावत - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण

कौन होगा जो यूँ ही बग़ावत करता है,
बिना कारण कौन ख़िलाफ़त करता है।

दरारें आ जाती है  रिश्तों में कभी कभी,
ऐसे कौन शिकवा शिकायत करता है।

मज़लूमों पर हो सितम सरे-ए-बाज़ार,
उनकी तो दिलेर ही वक़ालत करता है।

सज़ा देर सवेर उन्हें मिलती है ज़रूर,
जो जान बुझकर ये गफ़लत करता है।

सिक्कों की खनक तो सब कुछ नहीं,
'निर्वाण' यहाँ सबकी इज़्ज़त करता है।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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