बादल - कविता - महेन्द्र सिंह राज

बरस जाता सावन में काश,
कृषकों की पूरी होती आस।
घुमड़ते भूरे जो बना के दल,
नील गगन में, कहते बादल।।

बादल जीवन की आशा हैं,
ना बरसे तो जीवन नाश।
धरनी पर नीर प्रदाता हैं,
बिन जल होए सृष्टि विनाश।।

वारिधि सेजल वाष्पित होता,
पहुँचता ऊपर नील  गगन में।
ठंढी हवा से हो आर्द्र बरसता,
खुशियाँ भरता जन जीवन में।।

ना बरखा तो कृषि सुखानी,
सब है बादल की मेहरबानी।
पर ज्यादा यदि बरस गया तो,
आती है बाढ़ होती परेशानी।।

झील नदी सरवर सागर से,
जल वाष्पित हो वारिद बनते।
फिर बरस धराकी प्यास बुझा,
पहुँचे वारिधि बह बह छनके।।

यही अम्बुद का जीवन चक्र,
जो निरन्तर ही चलता रहता।
वाष्प रूप निज अंक नीर भर,
नीले अम्बर में बहता रहता।।

महेन्द्र सिंह राज - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos