अबकी होली - कविता - रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"

अबकी होली ऐसी हो!
अबकी होली ऐसी हो!
जीवन फागुन सा खिल जाए,
हर ऋतु बसंतों जैसी हो।
मन सतरंगी रंग रंग जाए,
हर हसरत दिल की पूरी हो।
बचपन सी होली खेल सकें 
फिर गली गली हुरियारी हो।
तुझे रंग मलूँ ख़ुद रंग जाऊँ 
कम जीवन की बेरंगी हो। 
होलिका दहन में हों दहन गिले,
मन प्रेम भरी पिचकारी हो।
ले गुलाल आ जाओ तुम, 
जैसे कृष्ण कन्हाई हो।
रंग श्याम प्रीत की ओढ चुनरिया,
नाचू ज्यौं राधा रानी हो।
सब दर्द मिटे मन रंग खिले,
निस-दिन जीवन में होली हो।
सौहार्द प्रेम यूँ बस जाए,
जीवन सुंदर रंगोली हो।
अबकी ये होली ऐसी हो,
अबकी होली कुछ ऐसी हो।।

रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि" - विदिशा (मध्यप्रदेश)

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