आई है होली अबीर गुलाल की - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

फागुन रुत, रसिया संग फाग गाती,
निकली मतवाली गौरी गाँव की।
प्रेम रंग में रंगी टोली चौपाल की,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

ढोल की थाप पे पाँव थरकाती,
पायल घुँघरू संग झलक गाल की।
दुनिया हुई दिवानी मस्त चाल पर,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

बादलों का आज रंग भी लाल है,
धरती बनी है गोपाल लाल की।
मन में जगी आश प्रिय मिलन की,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

अंग-अंग में आज हलचल मची है,
नखराली चाल मन-भावन की।
अलंकार की ताल सोलह शृंगार,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

चिकने गालों पर गुलाल मली है,
बिसर गई बात मनमुटाव की।
फूलों-सी खुशबू, दिलों में प्यार,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

आओ सब मिल, संग खेले गाएँ,
खुशी बाँटें मधुमास के बहार की।
यह रुत है प्रेम के इज़हार की,
आई है होली, अबीर गुलाल की।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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