एकता की शक्ति - कविता - सुनील माहेश्वरी

मैं हूँ साथ खड़ा तेरे,
फिर डरने की क्या बात,
हौसला उम्मीद से कर लेंगे,
ये नौका भी पार।
तू बन तो सही हिम्मत मेरी,
कर थोड़ा विश्वास ज़रा,
दृढ़ता के छोर से रच दे,
अब तू इतिहास बड़ा।
घबराना नहींं मेरे यार,
जब तक हूँ मैं संग तुम्हारे,
पहुँच ही जाएँगे मंज़िल तक,
गर हौसले हैं अगर बुलंद हमारे।
मंज़र बदलेगी तेरी कहानी,
जिससे रहेगा न कोई सानी,
तेरी हर चुनौतियाँ अब,
लोहा लेकर तैयार हैं,
गर मज़बूत है इरादे तेरे 
तो तू शस्त्र और प्रहार है।
विषमता को आँको ना तुम,
ये तो बस जी जंजाल है,
कमज़ोर नहीं तू बलिष्ट है,
मेरे यारा ये तेरी पहचान है।
चल हो जाए एक और एक ग्यारह
अब तेरे संग ज़िंदगी गुलज़ार है।

सुनील माहेश्वरी - दिल्ली

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