बेशुमार हादसों से गुज़रा हूँ मैं!
वक़्त से इसलिए सहमा हूँ मैं!
लहू लहू जिस्म है रूह के साथ,
अहले जवानी झुक सा गया हूँ मैं!
मुस्कुराहट ने छीन लिया चेहरा,
ओढ़ कर सारे दर्द चल रहा हूँ मै!
तन्हा तन्हा बियाबां तन्हा ज़िंदगी से,
जाने क्या क्या अब ढूँढता हूँ मैं!
अहसास की आग कम न होती,
फिर बेवफ़ा पनाह माँगता हूँ मैं!
परछाइयाँ मुझसे डरने लगी हैं,
अंदर ही अंदर क्या हो गया हूँ मैं!!
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)