नशा - कुण्डलिया छंद - डॉ. अवधेश कुमार अवध

पीते-पीते कह गया, होती बहुत ख़राब।
दूर रहो इससे अवध, कहते जिसे शराब।।
कहते जिसे शराब, शराफ़त की है दुश्मन।
सरेआम बदनाम, कराती द्वारे-आँगन।।
तन मन धन की हानि, मौत नित जीते-जीते।
बात अवध की मान, मरो मत पीते-पीते।।

डॉ. अवधेश कुमार अवध - गुवाहाटी (असम)

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