आँखों के सामने - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

आँखों के सामने
देख आपका ये चेहरा,
दिल खिला गुलाब सा
नींद करे किनारा।
लगता है जागते रहें 
सारी रात बस यूँ ही
साथ न छूटे अपना,
न हो कभी सवेरा।
सपने न आएँ 
मुझको कभी 
मिलते रहें 
जैसे मिलते रहे अभी तक।
ये साँसे हमारी 
ये सारी बातें हमारी 
समर्पित हुए जबसे
छाई दिल में प्रीत करारी।
कब तक मिलेंगे यों
छिप-छिप के सजनी
सबसे कह दो प्रिय है हमारा।
मेरी आँखों  के सामने 
देख आपका ये चेहरा।
दिल खिला गुलाब सा
नींद करें किनारा।
खाते है लोग,
मोहब्बत कि क़समें,
कौन जाने क्या है
उनके मन में।
मोहब्बत में तुम्हें
पाना अगर पाप होता,
आपस में एक दूजे पे न मरते,
किस्सा न राधा, न श्याम का होता।
जी तो रहे आपको पाने को,
तुम न मिली तो
हमें मरना गवांरा,
मेरी आँखों  के सामने 
देख आपका ये चेहरा।
दिल खिला गुलाब सा
नींद करें किनारा।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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