जोकर - कविता - चीनू गिरि

ठोकरें खाते गए और मुस्कुराते रहे,
हम अपनी हिम्मत को आज़माते रहे!
आदत ही ऐसी है हमारी तो साहब,
हम दुश्मनों को भी गले लगाते रहे!
महफ़िलों मे हम सब को हँसा कर,
तन्हाइयों में ख़ुद को रुलाते रहे!
सब अपने है और अपना कोई नही,
जोकर बनकर लोंगो को हँसाते रहे!!

चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)

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