वादाखिलाफ़ी से इनकार बेहतर - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

वादाखिलाफ़ी कायराना हरकत है।
विनम्रता पूर्वक किया गया इनकार झूठे वादों से बहुत अधिक अच्छा होता है। वादाखिलाफ़ी अति निंदनीय कृत्य है, वादाखिलाफ़ी का परिणाम कई बार अनेक घटनाओं के रूप में सामने आता है।
किसी को अन्यथा अनावश्यक प्रलोभन नहीं देना चाहिए।

कई बार लोग झूठ बोलकर व्यक्ति को झाँसा देते रहते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप अप्रिय घटनाएँ घटित हो जाती हैं। ऐसे में व्यक्ति में बदले की भावना भी उत्पन्न हो सकती है।आजकल ख़ासकर प्रेम संबंधों में अक्सर ऐसा होता है।
नम्रता से हाथ जोड़कर इनकार कर देना इससे लाख बेहतर है। किसी को भ्रमित किया जाए यह महापाप है।

वादाखिलाफ़ी करने वाले दूसरों की नज़रों में गिर जाते हैं, उनके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। किसी से झूठे वादे के ज़रिए उसे सपने दिखाना उसमें आशा के दीप जलाना अशोभनीय है, निंदनीय है, घोर पाप है।
वादाखिलाफी कायरता पूर्ण कृत्य है। यदि किसी ने आपसे कोई अपेक्षा कर रखी है और उसका काम आप नहीं कर सकते, आप किसी कारण से सक्षम नहीं हैं तो आपको उसे विनम्रता पूर्वक मना कर देना चाहिए। इसके लिए आप "कृपया माफ कीजिए" या "क्षमा कीजिए" आदि विनम्रता भरे शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। क्योंकि सामने वाला  इनकार सुन कर भी आसानी से दूसरा मार्ग ढूंढ सकता है।इससे आपके संबंध भी नहीं बिगड़ेंगे।
लेकिन लटकाना, टालमटोल करना बहुत गलत होता है और झूठा वादा तो घोर निंदनीय कृत्य है।

यदि आप किसी व्यक्ति को इनकार करते हैं तो उसे थोड़ी देर के लिए तक़लीफ़ होती है फिर वह कहीं दूसरी जगह इंतज़ाम कर लेता है।
झूठे वादे विश्वास और भरोसे को तोड़ देते हैं। अगर झूठा वादा करने वाला इंसान दूसरी बार मदद करने का भरोसा भी देता है तो भी उसके वादे का भरोसा नहीं रहता क्योंकि हम उसके झूठे स्वभाव से परिचित हो चुके होते हैं।
इसलिए हम अगर मदद करने में सक्षम नहीं है तो क्षमा मांगते हुए विनम्रता पूर्वक इंकार कर देना ही श्रेयस्कर है।

इस विषय मे साहिल लुधियानवी जी के एक शेर याद आ रहा है।
"वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन 
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा"
ये शेर बिल्कुल सही है। झूठे वादों से विनम्रता पूर्वक इनकार करना अधिक सम्मानजनक होता है।
यूँ तो विनम्रता का अर्थ ही है सत्य में जीना, धोखे में नहीं जो चाहे इकरार हो, या इंकार।

झूठे वादे हमेशा घातक होते हैं जिनके परिणाम भयावह भी हो सकते हैं।
किसी को भरोसे में लेना, फिर झूठे वादे करना, लटकाए रखना, झूठी तसल्ली देना, इन सब का अंजाम दूसरे के नुकसान के साथ खत्म होता है। कभी-कभी तो स्थिति बहुत नकारात्मक हो जाती है दूसरे की जान तक जा सकती है।
इससे तो लाख बेहतर है कि जिस कार्य को अंजाम न दिया जा सके उसे विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया जाए। जिससे सामने वाला झूठी आस में ना भटके और कोई विकल्प ढूंढ ले या संतोष ही कर ले। परंतु झूठी तसल्ली के बाद अचानक हुए नुकसान से तो बच जाएगा।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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