चाँद मिरा हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा

मुबारक़ हो आसमाँ, 
तिरे हिस्से में हो हुजूम-ए-अंजूम-ओ-चराग़,
तिरे सीने में रहे आफ़ताब 
पर चाँद मिरा हैं हो गया आगाज़।

उनके हिस्से आएँ 
राम ओ रहीम करीम कृष्ण संसार,
मिरे हिस्से आएँ 
तेरी खुशियाँ, बरकतें, दुआएँ हज़ार,

उनके खेतों में चले फ़व्वारें, हो धान की बरसात,
मिरे खेत में उड़े तिरा दुप्पट्टा, लहलहाए इंद्रधनुष इस पार से उस पार...

काएनात के क्षणिक दौर में 
उसे मिले ओहदें, शोहरतें और सरकार,

मिरे हिस्से आए क़ुर्बतें, बसंत, बहार, प्यार और बस परिवार...

कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)

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