महबूबा - गीत - आलोक रंजन इंदौरवी

मेरी नज़रों से दिल में उतर जाइए,
सूने आँगन को खुशियों से भर जाइए।
इश्क़ का ये समंदर है गहरा बहुत,
आप इसमें नहाकर सँवर जाइए।

रोज़ उठती है दिल में उमंगे बहुत,
एक एहसास मुझ में जगाती हुई।
देखकर एक नज़र मैं कहाँ खो गया,
इक खुशी आ गई गुनगुनाती हुई।
आरती मैं करूँ पुष्प चंदन करूँ,
दिल की देहरी पे थोड़ा ठहर जाइए।
मेरी नजरों...

ढूँढता मै रहा आपको दरबदर,
आप छुप छुप के मुझको रुलाते रहे।
मैं फ़िदा हो गया आपको देखकर,
आप नगमें मुहब्बत के गाते रहे।
फ़ासले अब हमारे न दरम्यान हों,
एक एहसान थोड़ा सा कर जाइए।
मेरी नज़रों...

आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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