ज़िन्दगी की हिसाब लेनी है
ख़ुद फ़कीरी उधार लेता हूँ
ग़लतियों को सुधार लेता हूँ
एक मुकम्मल किताब लेनी है
दुश्मनों का जवाब मिलते हैं
दिल्लगी में शुमार रहता हूँ
इश्क़ में यूँ बिमार रहता हूँ
बंदगी की ख़िताब मिलते हैं
कै़दियों के निवास में रहता
मंजरे आम कर नहीं सकते
दोजख़ी काम कर नहीं सकते
क़ब्र के वो लिबास में रहता
ख़ाक से दुश्मनी नहीं करते
राख से रोशनी नहीं करते
अज़हर अली इमरोज़ - दरभंगा (बिहार)