तुमको जीना होगा - कविता - श्रवण निर्वाण

बेशक! अपनों को खो दिया, आगे बढ़ना होगा
ख़्वाब अधूरे हैं बहुत, उन्हें तो पूरा करना होगा।
विपदा आई है, दुःख लायी इन्हें तो सहना होगा
टूटा तन, बुझा मन फिर भी तुमको जीना होगा।

महामारी से उथलपुथल हो गई, ये दुनिया सारी
दवा बनाने जुटें है जल्द हारेगी कोरोना बीमारी।
अधीर मत होना अब तो मिटेगी सबकी लाचारी
चली जायेगी अब बीमारी जीत निश्चित है हमारी।

नन्हें मुनो तुम भी तो करो स्कूल जाने की तैयारी
डॉक्टर-इंजीनियर बनने की तो होड़ होगी भारी।
बंद पड़े हैं अरसे से, ये स्कूल कॉलेज सब खुलेंगे 
बिछुड़े दोस्त फिर मिलेंगे नए नए वे सपने बुनेंगे।

हटेगी काली छाया वे शादी मेलों के पर्व आएँगे 
मौज मस्ती और रौनक के दिन वही लौट आएँगे।
मंडप सजेंगे, शहनाई बजेगी वे मंगल गीत गाएँगे
ढोल और डी जे बजेंगे खुशी में सब झूम जाएँगे।

उजड़े घर बसेंगे, वे कमाने खाने फिर निकलेंगे
बुझे दीपक जलेंगे, मासूम मुरझाये चेहरे खिलेंगे।
निर्वाण चाहे ईश्वर से अब तो खुशहाली छा जाए
सब मिल काम करें, कोई भी भी अब ना घबराए।

श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)

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