नया साल आया - कविता - राम प्रसाद आर्य

गया बीस, अब नया साल आया इक्कीस। 
सुखी, स्वस्थ, सम्पन्न सभी हों हे ईश! 
बाढ़ बैभव की आये इस नये साल में, 
खुशियों से हो झोली भरी, हे जगदीश! 

प्यार की नित हो बारिश, यों नये साल में, 
तन, बदन, मन, हो डूबा प्रेम-रस-ताल में। 
होली, दीवाली हर जन रहें मौज में,
भाईचारा बढे नित इस नये साल में।। 

जाति-धर्म भेद भूल, उर एकता वास हो, 
लोभ, लालच, अहम्, निरन्तर ह्रास हो। 
मन के नैराश्य, गम का सजड़  नाश हो, 
घर-घर खुशियाँ, उरों में नित उल्लास हो।। 

बेरोजी को रोज़गार सन् इक्कीस दे, 
लक्ष में जीत हर हो, ना कभी हार दे। 
बाँणी में  नित मधुरता का संचार दे, 
हमें आशीष नये साल ये दे सारदे ! 

नव चिन्तन, विषय नव, ज्ञान नव प्राप्ति हो, 
भाव-प्रभाव, विधान नव की अध्याप्ति हो। 
रूप-प्रारूप विकास नव, की उद्याप्ति हो,
नित्य इतिहास नव की अनुज्ञाप्ति हो।। 

मरुस्थल में भी हर दिन बस हरियाली हो, 
अन्न, फल पूर्ण बगिया की हर डाली हो। 
घर में जो वस्तु भी हो, बस घर वाली हो, 
अन्न, धन, जन से ना कोई घर खाली हो।। 

गया बीस अब नया साल आया इक्कीस, 
देश, दुनियाँ रहे खुश, विनय मेरी हे ईश!
बाढ बैभव की आये, नये साल में, 
आश-विश्वास परस्पर बढे हे जगदीश!

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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